भारत से हम क्या समझते हैं ? क्या भारत भूगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं में बांधा हुआ एक पृथ्वी का अंश है? ऐसा होता तो क्या भारत से मिलों दूर करेबिया की छोटे से द्वीप त्रिनिदाद में भारतीय परम्पराओं का पालन होता? क्या थाईलैंड के हर शासक का नाम भगवान राम के नाम पर होता?
तो फिर भारत क्या एक विचार, एक संस्कृति का प्रेशक है? अगर यह सच है तो फिर बहुत से भारत होंगे, किंतु भारत तो एक ही है? तो फिर आख़िर भारत क्या है?
अगर हम भारत को किसी खाचें में समझने की कोशिश करें तो कह सकते हैं की भारत एक जीते-जागते व्यक्तित्व के समान है। जो समय के हर चक्र, भुतकाल से भविष्य तक में जीवंत है। हमारी संस्कृति, हमारी परम्पराएँ, हमारे विचार, इतिहास एवं और जो भी पहलुए एक सभ्यता से जुड़े होते हैं , वह सभी भारत में समागिन है। इन सभी विभिन्न पहलुओं को जो मोती की माला से एक साथ पिरोती है वह है भारत की आध्यात्मिकता। अगर भारत एक शरीर समान है तो अध्यात्म भारत की आत्मा है। यही आत्मा भारत की अनेकता में भी एकता की कारक है। यही आध्यात्मिकिता भारत को अखंड भारत बनती है। इस मूल विचार को समझना और मानना ही भारत को मानना है ।
Believe in Bharat
What is Bharat? Is it a land defined by geographical or political boundaries? If so, then why would you find Bhartiya traditions practised in the small Caribbean island of Trinidad, thousands of miles away from Bharat? or why would every king of Thailand be named after Bhagwan Ram?
Then is Bharat an idea or culture? If that were true there would be so many versions of Bharat but there is only one Bharat. So what really is Bharat?
At best Bharat can be thought of as a living, breathing entity. It lives as much in past as in present and the future too. It lives in you and those outside of you. It encompasses the cultures, traditions, practices, belief systems, history and all the other elements that constitute civilization. In this, the one thread that holds all these different aspects of Bharat together and makes it one is Bharat’s spirituality. It is the spirituality of Bharat that brings out the unity in diversity and makes Bharat as Akhand Bharat. To believe in this is to believe in Bharat.